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उप॑ श्वासय पृथि॒वीमु॒त द्यां पु॑रु॒त्रा ते॑ मनुतां॒ विष्ठि॑तं॒ जग॑त्। स दु॑न्दुभे स॒जूरिन्द्रे॑ण दे॒वैर्दू॒राद् दवी॑यो॒ऽअप॑ सेध॒ शत्रू॑न् ॥५५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उप॑। श्वा॒स॒य॒। पृ॒थि॒वीम्। उ॒त। द्याम्। पुरु॒त्रेति॑ पुरु॒ऽत्रा। ते॒। म॒नु॒ता॒म्। विष्ठि॑तम्। विस्थि॑त॒मिति॒ विऽस्थि॑तम्। जग॑त्। सः। दु॒न्दु॒भे॒। स॒जूरिति॑ स॒जूः। इन्द्रे॑ण। दे॒वैः। दू॒रात्। दवीयः॑। अप॑। से॒ध॒। शत्रू॑न् ॥५५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:55


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (दुन्दुभे) नगाड़े के तुल्य गरजने हारे ! (सः) सो आप (इन्द्रेण) ऐश्वर्य से युक्त (देवैः) उत्तम विद्वान् वा गुणों के साथ (सजूः) संयुक्त (दूरात्) दूर से भी (दवीयः) अतिदूर (शत्रून्) शत्रुओं को (अपसेध) पृथक् कीजिए (पुरुत्रा) बहुत विध (पृथिवीम्) आकाश (उत) और (द्याम्) बिजुली के प्रकाश को (उप, श्वासय) निकट जीवन धारण कराइये, आप उन अन्तरिक्ष और बिजुली से (विष्ठितम्) व्याप्त (जगत्) संसार को (मनुताम्) मानो उस (ते) आपका राज्य आनन्दित होवे ॥५५ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्युत् विद्या से हुए अस्त्रों से शत्रुओं को दूर फेंक, ऐश्वर्य से विद्वानों को दूर से बुला के सत्कार करें, अन्तरिक्ष और बिजुली से व्याप्त सब जगत् को जान विविध प्रकार की विद्या और क्रियाओं को सिद्ध करें, वे जगत् को आनन्द करानेवाले होते हैं ॥५५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(उप) (श्वासय) प्राणय (पृथिवीम्) अन्तरिक्षम् (उत) अपि (द्याम्) विद्युत्प्रकाशम् (पुरुत्रा) बहुविधम् (ते) तव (मनुताम्) विजानातु (विष्ठितम्) व्याप्तम् (जगत्) (सः) (दुन्दुभे) दुन्दुभिरिव गम्भीरगर्जन ! (सजूः) संयुक्तः (इन्द्रेण) ऐश्वर्येण युक्तैः (देवैः) दिव्यैर्विद्वद्भिर्गुणैर्वा (दूरात्) (दवीयः) अतिदूरम् (अप) (सेध) दूरीकुरु (शत्रून्) ॥५५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे दुन्दुभे ! स त्वमिन्द्रेण देवैः सजूर्दूराच्छत्रून् दवीयोपसेध पुरुत्रा पृथिवीमुत द्यामुपश्वासय भवान् ताभ्यां विष्ठितं जगन्मनुतां तस्य ते राज्यमानन्दितं स्यात् ॥५५ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विद्युद्विद्याजैरस्त्रैः शत्रून् दूरे प्रक्षिप्यैश्वर्येण विदुषो दूरादाहूय सत्कुर्युरन्तरिक्षविद्युद्भ्यां व्याप्तं सर्वं जगद्विज्ञाय विविधा विद्याः क्रियाः साधयेयुस्ते जगदानन्दयितारः स्युः ॥५५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्युत विद्येनेयुक्त अस्रांनी शत्रूंचा नाश करतात व ऐश्वर्ययुक्त बनून दूर असलेल्या विद्वानांशी संपर्क साधून त्यांचा सन्मान करतात, तसेच अंतरिक्ष व विद्युत यांनी व्याप्त असलेल्या जगाचे ज्ञान प्राप्त करतात व निरनिराळ्या प्रकारच्या विद्या व क्रिया सिद्ध करतात. ती सर्व जगाला आनंदित करतात.